गुरु हमारे जीवन में उदार ,आंत्र ,जिगर एवं मेदा [चर्बी ] ,स्थौल्य एवं दौर्बल्य ,और जीव का कारक है। नितम्ब और पैर पीड़ा तथा शोथ को देने वाला है। गुरू को बृहस्पति भी कहा जाता है अर्थात महानता ,उत्कृष्ट ज्ञान ,उन्नत नैतिक स्टार ,विपुल चरित्र-बल एवं सिद्धांत पथ गमन में सन्नद्ध व्यक्तियों की वृत्तियों पर बृहस्पति का अधिकार होता है। इनमें धर्माध्यक्ष [मठाधीश ,शंकराचार्य आदि धर्मार्थ विभाग या संस्था के अधिकारी ,कर्मकांडी ,पुजारी ,नीति उपदेशक ,धार्मिक शिक्षक ,वित्त एवं विधि व्यवस्थापक ,अधिवक्ता दार्शनिक न्यायधिपति ,विश्वविद्यालय में प्राध्यापक ,व्याकरण शास्त्रज्ञ ,विचारक और अन्वेषक ,फिजिशियन ,निर्देशक ,सलाहकार समिति का सदस्य ,शोध अधिकारी ,शिक्षा अधिकारी ,शिक्षा -शास्त्री ,राजस्व विभाग ,कोषागार या वित्त विभाग में पद प्राप्प्त ,बैंक मैनेजर एवं साझेदार ,सोना ,खनिज व् नमक के व्यापारी विशेष रूपतथा विद्या ,बुद्धि ,धन ,बड़ा भाई ,कानून पदवी आदि देने वाले है। भाग्य वृद्धि भी इसी ग्रह के शुभ होने से होती है। लोक हितकारी प्रवृत्ति और आलौकिक ज्ञान से इनका सत्वात्र सम्मान होता है।
पंचमेश ,नवमेश ,एकादशेश और लग्नेश बृहस्पति पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो मनुष्य विद्या वारिध होता है अध्यापन विशेषकर हिंदी ,संस्कृत का अध्यापक होता है।
सूर्य की सहायता से न्यायाधीश होता है। वकील होना स्वाभाविक गुण बुध के मेल से हो जाता है। मंगल की सहायता से फौजदारी का वकील बनता है। पंचमेश द्वितीयेश तथा बुध को लेकर गुरू जातक को महँ व्याख्यान दाता बनाते हैं। चन्द्रमा से शांति का नेता तथा मंगल के साथ से उपद्रवी नेता बनता है।
गुरू और एकादश शुभ हो तो जातक का बड़ा भाई भी होता है। पापी ग्रहों की दृष्टि मात्र से बड़ा भाई को मृत्यु सम कष्ट प्राप्त होता है। एकादशेश और लग्नेश के मेल से व्यापर में बड़े भाई से सहायता प्राप्त होती है। नवमेश द्वादशेश बृहस्पति मंदिर धर्मशाला बनाना और पूजा पाठ में भी संलग्न करता है।
द्वितीयेश के साथ गुरू हों तो जातक ब्याज से ,बैंक से सम्बन्ध करता है। उत्तम गुरू से राज्य कृपा से प्राप्त होने के योग बनता है। चतुर्थेश और मंगल से जमीन से या जमीन व्यवसाय से लाभ होता है। दशमेश और एकादशेश व्यापार में उन्नति अच्छी होती है