मंगल चंडिका यंत्र साधना सर्व कार्य सिद्धि के लिए



किसी भी बात पर उत्पन्न हुई शत्रुता या विरोध को शांत कर शत्रुओं से मुक्ति हेतु मंगल चंडिके यंत्र की साधना की जाती है| इस यंत्र के माध्यम से मनुष्य शत्रुओं के अलावा तंत्र अथवा ऊपरी बाधा द्वारा आई हुई कठिनाइयों को नष्ट करने में समर्थ हो जाता है | राजनीति, सर्विस और व्यापार में अकारण शत्रु उत्पन्न होकर व्यवधान एवं बाधा उपस्थित कर रहे हो तो परमात्मा की शक्ति में आस्था रखते हुए मंगल चंडीके यंत्र की साधना लाभकारी हो सकती है|



 


 


यंत्र निर्माण : यंत्र को मंगलवारी अष्टमी रवि पुष्य नक्षत्र, ग्रहण काल, दीपावली, होली, नवरात्र अथवा किसी मंगलवारी अष्टमी के दिन शुभ एवं अनुकूल मुहूर्त में चौकोर स्वर्ण, रजत, ताम्र पत्र पर बनवाया जा सकता है अथवा चौकोर भोज पत्र पर आठ अंगुल लंबी अनार की कलम से गंगाजल मिश्रित अष्टगंध की स्याही से बनाया जा सकता है|



 



यंत्र साधना : उपरोक्तानुसार यंत्र को निर्माण करने के पश्चात उसे किसी लकडी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर दुर्गा देवी के समक्ष स्थापित करें | रोली, अक्षत, लाल पुष्प एवं धूप एवं दीपक से मां एवं यंत्र का पूजन करें तथा लाल आसन पर बैठकर निम्नलिखित दोनों मंत्रों का लाल मूंगे की माला या रुद्राक्ष की माला से एक-एक माला समर्पित कर कच्चा नारियल फोड़ प्रसाद अर्पण करें |


ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रू फट् स्वाहा ।।
देवी भागवत् के अनुसार अन्य मंत्र 
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ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा ।।
मंगल चंडिका स्त्रोत 
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।। श्री मंगलचंडिकास्तोत्रम् ।।
ध्यान
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"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके I 
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः II 
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः I
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् II
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः I
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् II 
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I 
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् II 
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् I
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् II 
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् I
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II 
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् I 
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II 
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे II 
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने I
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः II


शंकर उवाच
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रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I 
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I 
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये II
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I 
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I 
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I 
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे II
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् I 
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः II
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् II


II इति श्री ब्रह्मवैवर्ते मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम् II"


उक्त स्त्रोत को मंगलवार के दिन से शुरू करे एवं माँ मंगल चंडिका का धयान कर दीपक जलाकर नित्य कम से कम 5 पाठ करने से अत्यंत लाभ मिलता है ।


 


 
मंत्र:- ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रू फट् स्वाहा
(देवी भगवत के अनुसार अन्य मंत्र :- ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा)
दोनों में से कोई भी मन्त्र जप सकते है.







यंत्र यदि स्वर्ण रजत या तामरपत्र पर बनाया गया हो तो उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर लेनी चाहिए और पूजा अर्चना के बाद यंत्र को गले में धारण करना चाहिए| यदि यंत्र भोजपत्र पर बनाया गया हो तो स्वर्ण, रजत, ताम्र से निर्मित ताबीज में रखकर धारण करें | शत्रु बाधा जब तक शांत ना हो तब तक रोजाना उपरोक्त मंत्रों का नियमित 108 बार जपकर दीपक प्रज्वलित करें |